जब भरत जी का निषाद राज से जंगल में मिलन हुआ मन की व्यर्था का कहिं राजन् अयोध्या के राजा भरत जी अपनी तरफ आवत है, दूरन से दिखावत है, माता को साथ लिऐ है। बहुत बड़की सेना लिऐ है, जैसे प्रभु राम को मारन आए है। हाथी गर्जना करत आवत है, आंखन से दिखावे है। वो अयोध्या के राजा भरत जी आवत है, हां हाथी , घोड़ा सूर्य पताका लहरावे सामने भरत जी दिखावे है। तबहिं निषाद राज विचार करत रहि कि तुरंतहिं नगाड़ा बजावत है। गांव के सबहि खे बुलावत है, भरत के लिए योजना बनावत है। सब के यह बात सुनावत है, कैकई के पुत्र भरत आवत है। सब सतर्क हो जात है, कछु वन में छुप जात है। आक्रमण की आश लगात है, तबहिं निषाद राज पास जावत है। और भरत जी के विचार जानत है, तब वह राम मिलन की आश दिखावत आंखों से आसू आवत है। रो रो हाल सुनावत है, आस,विश्वास की बात कहावत है। निषाद राज को प्रभु राम के सखा, मित्र बतयावत है। यह बात जब भरत सुनत है, तब निषाद मिलन की आश करता है। तबहि निषाद राज सामने दिखत है, भरत को नमन करत है। गले लगात है शीश नवात है, और भैया राम की बात सुनात है। तभी भरत जी खुद को अयोग्य समझत है, और दु :खत विचार करत है। तवही निषाद राज गले लगावत है, और खुद को अपराधी बतावत है। भरत जी को मन के विचार बतावा तबहि स्वयं को पापी समझत है। राम के भाई के प्रति विद्रोह के विचार उठत रही खुद को पापी कहत रही और क्षमा मांगत रही आप ता राम के दूसर रूप होवे भरत भैया शत्रुधन से कहत रहे निषाद राज के चरण पढ़ने को कहत रहे तबहिं निवाद हाथ जोड़त रहे और शत्रुघ्न को नमन करत रहे।
मौलिक / अप्रकाशित रचना विशाल लोधी ग्राम मगरधा पोस्ट आफिस सूखा तहसील पथरिया जिला दमोह मध्यप्रदेश
Congrats bro Mr. Vishal Lodhi you got PERTAMAX...! hehehehe...
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जंगल में मिलन हुआ
मन की व्यर्था
का कहिं राजन् अयोध्या के राजा
भरत जी अपनी तरफ आवत है,
दूरन से दिखावत है,
माता को साथ लिऐ है।
बहुत बड़की सेना लिऐ है,
जैसे प्रभु राम को मारन आए है।
हाथी गर्जना करत आवत है,
आंखन से दिखावे है।
वो अयोध्या के राजा भरत जी आवत है,
हां हाथी , घोड़ा सूर्य पताका
लहरावे सामने भरत जी दिखावे है।
तबहिं निषाद राज विचार करत रहि
कि तुरंतहिं नगाड़ा बजावत है।
गांव के सबहि खे बुलावत है,
भरत के लिए योजना बनावत है।
सब के यह बात सुनावत है,
कैकई के पुत्र भरत आवत है।
सब सतर्क हो जात है,
कछु वन में छुप जात है।
आक्रमण की आश लगात है,
तबहिं निषाद राज पास जावत है।
और भरत जी के विचार जानत है,
तब वह राम मिलन की आश दिखावत
आंखों से आसू आवत है।
रो रो हाल सुनावत है,
आस,विश्वास की बात कहावत है।
निषाद राज को प्रभु राम के सखा,
मित्र बतयावत है।
यह बात जब भरत सुनत है,
तब निषाद मिलन की आश करता है।
तबहि निषाद राज सामने दिखत है,
भरत को नमन करत है।
गले लगात है शीश नवात है,
और भैया राम की बात सुनात है।
तभी भरत जी खुद को अयोग्य समझत है,
और दु :खत विचार करत है।
तवही निषाद राज गले लगावत है,
और खुद को अपराधी बतावत है।
भरत जी को मन के विचार बतावा
तबहि स्वयं को पापी समझत है।
राम के भाई के प्रति विद्रोह के विचार
उठत रही खुद को पापी कहत रही
और क्षमा मांगत रही आप ता राम के
दूसर रूप होवे भरत भैया शत्रुधन से कहत रहे
निषाद राज के चरण पढ़ने को कहत रहे
तबहिं निवाद हाथ जोड़त रहे
और शत्रुघ्न को नमन करत रहे।
मौलिक / अप्रकाशित रचना
विशाल लोधी
ग्राम मगरधा पोस्ट आफिस सूखा
तहसील पथरिया जिला दमोह मध्यप्रदेश
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